Sunday, June 20, 2021

अकाल मृत्यु क्यों होती है

By:   Last Updated: in: ,

अकाल मृत्यु क्यों होती है? और उसके बाद उसकी आत्मा का क्या होता है। धरती पर जिस प्राणी में जन्म लिया है उसकी मौत ही तय। यह एक ऐसा सच है जिसे बदला नहीं जा सकता। हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी लोक में प्राणियों की संख्या इतनी है कि हर दिन किसी ना किसी की मृत्यु होती रहती हैं । 


जाहिर से   बात है कि हर मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता। इनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी आत्मा सदियों तक पृथ्वी लोक में ही रह जाती है। इसका कारण है उनकी अकाल मृत्यु  हो जाती है 

आपने कई बार देखा होगा कि आए दिन लोग सड़क दुर्घटना या फिर किसी  आपदा का शिकार हो जाते हैं और अपनी जान गवा बैठे हैं। ऐसी मौतों को धर्म शास्त्रों में अकाल मृत्यु कहा गया है। अकाल मृत्यु वह स्थिति है जब शरीर को नष्ट हो जाता है लेकिन आत्मा संसार में ही बनी रह जाती है।

लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है। अकाल मृत्यु के पीछे क्या कारण होता है और उसके बाद आत्मा का क्या होता है। 

नमस्कार दोस्तों , एक बार फिर से हम हाजिर हैं आपके लिए एक रोचक विषय लेकर। देर ना करते हुए चलिए आज के पोस्ट  की शुरुआत करते हैं। ओर जानते है अकाल मृत्यु बारे में सच्ची बातें 

अकाल मृत्यु क्यों होती है

 दर्शकों साधारण मृत्यु  के बारे में तो हम सभी जानते हैं और समझते हैं लेकिन अकाल मृत्यु का विषय ऐसा जिसे इसके बारे में कई बातें कही जाती हैं। गरुड़ पुराण के  7 अध्याय में लिखा गया है कि अगर कोई प्राणी भूख से तड़प कर मर जाता है। या किसी हिंसा जानवर दोबारा मृत्यु हो जाती है या फिर जहरीला पदार्थ सेवन करने से या फिर पानी में डूबने से अगर किसी मनुष्य की मौत हो जाती है? तो ऐसे मनुष्य को अकाल मृत्यु के श्रेणी  में रखा जाता है। 

अकाल मृत्यु कैसे होती है ? 

दोस्तों अकाल मृत्यु किसी कारण से हो सकती है। फिर चाहे वह किसी रोग के कारण हो। यह दुर्घटना के कारण ऐसे में मनुष्य अक्सर यही सोचता है को काश ये ये उनके  साथ नहीं हुआ होता। तो सायेद इसकी मृत्यु नही होती 

गरुड़ पुराण में विष्णु जी के वाहन गरुड़ राज ने श्री हरि से यह प्रश्न पूछा था। की जब वेदों में मनुष्य की उम्र 100 साल निश्चित की गयी है तो उनकी अकाल मृत्यु क्यों हो जाती है? 

इस सवाल के उत्तर में श्री हरि  तर्क देते हैं कि यह सच है वेदों  में मनुष्य की उम्र 100 साल निर्धारित की गई है। 

परंतु इसमें दुष्कर्म को नहीं मिलाया गया है। यानी हर इंसान की मृत्यु तभी होती है जब उसके पास धर्म कार्यों के लिए शक्ति नहीं होती है या फिर उसका शरीर उसे धर्म कार्य   करने की इजाजत नहीं देता। इसके अलावा जब कोई इंसान अपनी इच्छा से धर्म कार्यों को त्याग देता है तो पृथ्वी पर उसके जीवन की अवधि कम होती जाती है।

 देखा जाए तो हर इंसान का कर्म होता है। उसका धर्म होता है ऐसे में  इंसान की मृत्यु तब होती है जब उसके पास अपने इन कर्मों को निभाने की शक्ति यह इच्छा नहीं होती। इंसान की उम्र भले ही  100 साल हो लेकिन अपने कर्मों के जरिए वह अपनी उम्र को खुद ही नष्ट करता चला जाता है। 

वेदों का ज्ञान ना होने से मनुष्य जान  ही नहीं पाता कि वह कब  कुकर्म करता जाता है। अब बात आती है कि 

अकाल मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? 

गरुड़ पुराने आगे विष्णु जी यह भी कहते हैं कि मनुष्य के जीवन के सात चक्र निश्चित है। ऐसे में अकाल मृत्यु को प्राप्त होने वाले जो मनुष्य इस चक्र को पूरा नहीं कर पाते। उसे मृत्यु  के बाद भी कई प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। 

दरअसल अचानक ही मृत्यु होने की वजह से मनुष्य की इच्छा कामना और तरष्णा बनी रहती है जो कभी पूरी नहीं हो पाती ऐसे में सरीर  तो  नष्ट हो जाता है लेकिन आत्मा का मुंह नहीं छोड़ता इस  स्थिति में अकाल मृत्यु वाली आत्माएं अपने परिजनों यह जीवित लोगों को भ्रष्ट पहुँचती है । और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने का भी प्रयास  करती है।

 गरुड़ पुराण में बताया गया है कि प्राकृतिक मौत से मरने वाले मनुष्य को 3, 10,13 या 40 दिन में दूसरा शरीर प्राप्त  हो जाता है। 

जब कि अकाल मृत्यु,  व्यक्ति, भूत प्रेत पिशाच, कुष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, बेताल और छत्रपाल योनि में भटकता रहता है। उनकी आत्मा को आसानी से शांति नहीं मिलती। आपको बता दें कि अकाल  मृत्यु में आत्महत्या को सबसे निचले दर्जे पर रखा जाता है।

मृत्यु के कितने दिन बाद जन्म मिलता है?

 ग्रंथों की दृष्टि से यह एक घिनौना कृत्य है। भगवान विष्णु जी ने गरुड़ पुराण में इसे ईश्वर का निरादर ओर अपमान   कहा है। वह कहते हैं कि आत्महत्या करने वाले मनुष्य की आत्मा पृथ्वी लोक पर तब तक भटकती रहती है जब तक कि वह प्रकृति द्वारा निर्धारित अपने जीवन चक्र को पूरा नहीं कर लेती। 

ऐसी आत्मा को ना तो नरक लोक में जगह मिलती है और ना ही स्वर्ग लोक में ऐसी आत्मा को मरने के बाद भी सबसे कष्ट दाई स्थिति से गुजरना पड़ता है। यह आत्माएं अपनी तमाम इच्छाओं की पूर्ति के लिए अंधकार में तब तक भटकती रहती हैं जब तक कि उनका जीवन चक्र पूरा नहीं हो जाता। 

अतहत्या करने वाली आत्माओं! कास्ट  को तो नहीं कम किया जा सकता, लेकिन गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु को प्राप्त मनुष्य की आत्मा की शांति के कई मार्ग बताए गए हैं। 

अकाल मृत्यु से बचने के लिए मंत्र

भगवान विष्णु बताते हैं कि से  मनुष्य परिजनों को नदी या तालाब में तर्पण करना चाहिए, साथ ही मृत आत्मा की इच्छा  की पूर्ति के लिए पिंडदान और दान पुण्य जैसे सत्कर्म करने चाहिए ताकि उनकी आत्मा को जल्द ही मुक्ति मिल सके। यह सत्कर्म कम से कम 3 से 4 वर्षों तक करना चाहिए। तब  जाकर कहीं अकाल मृत आत्मा को मुक्ति मिल पाती है और उनके नए जीवन की शुरुआत होती है।

 तो दोस्तों आज का यह विषय यहीं पर समाप्त होता है। यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसे लाइक करें। ब्लॉग को भी सब्सक्राइब करें और भविष्य में ऐसे पोस्ट  को पढ़ने के लिए हम से जुड़े रहे हैं ओम नमः शिवाय।

2 comments:
Write comment